BA Semester-3 HIndi Gadya - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2645
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य : सरल प्रश्नोत्तर

एकांकी

प्रश्न- हिन्दी एकांकी का विकास बताते हुए हिन्दी के प्रमुख एकांकीकारों का परिचय दीजिए।

अथवा
आधुनिक हिन्दी एकांकियों के उद्भव एवं विकास पर संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।

उत्तर -

'एकांकी' का शाब्दिक अर्थ है 'एक अंक वाला'। यह नाटक के समान ही अभिनय से सम्बन्धित साहित्य की एक विधा है, जिसमें किसी घटना या विषय को एक अंक में प्रस्तुत किया जाता है। यद्यपि आधुनिक युग में एकांकी के जिस रूप और शैली का प्रचलन हो रहा है, उसका विकास पाश्चात्य देशों में हुआ है किन्तु यह सत्य है कि प्राचीन भारतीय साहित्य में भी एकांकी या एकांकी से मिलते-जुलते रूपकों का प्रचार रहा है। नाटक के विभिन्न भेदों में से व्यायोग, प्रहसन, भाव, वीथी, वाटिका, गोष्ठी आदि में ही अंक होता है अतः इन्हें प्राचीन ढंग के एकांकी कह सकते हैं।

1. भारतेन्दु कालीन एकांकी - हिन्दी में प्राचीन ढंग के गद्य-बद्ध एकांकियों का आरम्भ भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा किया गया था। उन्होंने प्राचीन संस्कृत नाट्य साहित्य से प्रेरणा ग्रहण करते हुए नाटक व एकांकी के विभिन्न रूपों के विकास का प्रयत्न किया। आपके इन एकांकियों में जहाँ उनका एक लक्ष्य कला का विकास करना, वहाँ दूसरी ओर जनता का ध्यान तत्कालीन समस्याओं की ओर आकर्षित करना भी है। उनके प्रहसनों में विभिन्न रूढियों, रीति-रिवाजों, सामाजिक एवं राष्ट्रीय बुराइयों पर तीखा व्यंग्य किया गया है। विदेशी सरकार की खबर भी यत्र-तत्र ली गयी है। भारतेन्दु के अतिरिक्त उनके युग में अन्य लेखकों ने सर्वाधिक रूपकों व प्रहसनों आदि की रचना की जिन्हें प्राचीन ढंग के एकांकी कह सकते हैं। इनमें से कुछ का नाम यहाँ उद्धृत किया जाता है तन मन धन गुसाई जी के अर्पण' (राधाचरण गोस्वामी), 'कलियुगी जनेऊ' (देवकीनन्दन त्रिपाठी). शिक्षादान' (बालकृष्ण भट्ट), 'वैदिकी मिथ्या मिथ्या न भवति' (जी.एल. उपाध्याय). हिन्दी उर्दू नाटक' (रत्न चन्द्र) आदि। इन एकांकियों में वे सभी विशेषताएँ उपलब्ध होती हैं जो भारतेन्दु के एकांकियों में बताई गई हैं।

2. द्विवेदी कालीन एकांकी - द्विवेदी युग में हिन्दी एकांकी के स्वरूप पर पाश्चात्य एकांकी का भी प्रभाव पड़ने लगा, जिससे उनके बाह्य रूप में क्रमशः थोड़ा बहुत अन्तर आने लगा, किन्तु उनकी मूल आत्मा भारतेन्दु युग के अनुरूप ही रही। उनका प्रमुख उद्देश्य समाज सुधार एवं राष्ट्रोन्नति ही रहा। इस युग के प्रमुख एकांकियों में मंगल प्रसाद विश्वकर्मा का 'शेर सिंह, सियारामशरण गुप्त का 'कृष्णा', ब्रजलाल शास्त्री के 'भारती' में प्रकाशित अनेक एकांकी 'नीला', 'दुर्गावती', 'पन्ना', 'तारा' आदि। रामसिंह वर्मा के दो प्रहसन 'रेशमी रूमाल' और 'किस-मिस', सरयू प्रसाद बिन्दु का 'भयंकर भूत', शिवराम दास गुप्त का 'नाक में दम बदरीनाथ भट्ट का रेगड़ समाचार के एडीटर की धूल दच्छता', रूपनारायण पाण्डे का 'मूर्ख मंडली' पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र' का 'चार बेचारे', श्री सुदर्शन का आनरेरी मजिस्ट्रेट' आदि उल्लेखनीय हैं। इस युग के एकांकियों को विषय-वस्तु की दृष्टि से चार वर्गों में विभाजित किया गया है- सामाजिक, व्यंग्यात्मक, राष्ट्रीय ऐतिहासिक, धार्मिक, पौराणिक और अनुवादित।

शिल्प की दृष्टि से भी द्विवेदी कालीन एकांकियों में पूर्ण युग से विकास दृष्टिगोचर होता है। भारतेन्दु काल में कहीं-कहीं नांदी, प्रस्तावना, भरत वाक्य आदि की प्रवृत्ति दिखाई पड़ती थी, जो इस काल में आकर लुप्तप्राय हो गई। कथानक को तीव्र गति से चरम सीमा तक पहुंचाने का प्रयत्न किया जाने लगा। पद्य का पूर्ण बहिष्कार होने लगा। फिर भी एकांकी के पाश्चात्य रूप का पूर्ण विकास इनमें दृष्टिगोचर नहीं होता।

3. आधुनिक एकांकी - एकांकी के आधुनिक रचना काल को निम्नलिखित दो खण्डों में विभाजित किया जा सकता है-

(i) सन् 1930 से 1945 तक पाश्चात्य शैली में लिखे गए एकांकी जिन्हें हम यहाँ आधुनिक एकांकी कह सकते हैं, का विकास हिन्दी में लगभग सन् 1930 ई. के अनन्तर में हुआ। जयशंकर प्रसाद ने सम्वत् 1986 लगभग (1930) में एक घूँट की रचना की। विभिन्न विद्वानों ने 'एक घूँट को आधुनिक ढंग का सर्वप्रथम हिन्दी एकांकी स्वीकार किया है। डा. हरदेव बाहरी का कथन है 'यों तो भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, बदरी नारायण चौधरी, राधाचरण गोस्वामी, बालकृष्ण भट्ट प्रताप नारायण मिश्र और राधाकृष्ण दास ने पिछली शताब्दी में ही ऐसे रूपक लिखे थे जो आजकल के एकांकियों से मिलते-जुलते हैं परन्तु आदर्श एकांकी नहीं कह सकते। हिन्दी एकांकी का प्रादुर्भाव जयशंकर प्रसाद के एक घूँट से होता है।" दूसरी ओर डा. नगेन्द्र की भी मान्यता है "सचमुच हिन्दी एकांकी का प्रारम्भ प्रसाद के 'एक घूँट' से "हुआ है। प्रसाद पर संस्कृत का प्रभाव है, इसलिए वे हिन्दी एकांकी के जन्मदाता नहीं कहे जा सकते, यह बात मान्य नहीं है। एकांकी की टेकनिक का एक घूँट में पूरा निर्वाह है। "इस मत का समर्थन प्रो. सद्गुरु शरण अवस्थी, डा. सत्येन्द्र, प्रो. प्रकाश चन्द्र गुप्त प्रभृति विद्वानों ने भी किया है, अतः इसे स्वीकार कर लेने में कोई आपत्ति नहीं है। डा. महेन्द्र ने प्रसाद के 'सज्जन' और 'करुणालय को भी एकांकी के अन्तर्गत लिया है। सन् 1930 से लेकर 1945 ई. तक के आधुनिक हिन्दी एकांकी का विकास हम निम्नलिखित संकेतों के माध्यम से ज्ञात कर सकते हैं-

(क) डा. रामकुमार वर्मा - मौलिक एकांकियों की परम्परा को आगे बढ़ाने का श्रेय सर्वप्रथम डा. रामकुमार वर्मा को है। उनका 'बादल की मृत्यु सन् 1930 में प्रकाशित हुआ जिसे डा. सत्येन्द्र ने 'एक घूँट' के अनन्तर दूसरा स्थान दिया है। कला की दृष्टि से यद्यपि वह सफल एकांकी नहीं था पर प्रयोग की दृष्टि से एकांकी इतिहास में इसका स्थान महत्वपूर्ण माना गया है। इसमें काल्पनिकता तथा काव्यात्मकता अधिक है, नाटकीयता कम आगे चलकर वर्मा जी के कई एकांकी संग्रह प्रकाशित हुए जिन्हें काल क्रमानुसार इस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है 'पृथ्वीराज की आँखे' (1937), 'रेशमी टाई' (1939), 'चार मित्रा' (1943) विभूति (1930), 'सप्तकिरण' (1947), 'रूप रंग (1948), कौमुदी महोत्सव' (1949), ध्रुवतारिका' (1920), 'ऋतुराज' (1952) रजतरश्मि' (1952), दीपदान' (1957), 'काम-कदला' (1955), 'बापू' (1956), 'इन्द्र धनुष' (1957), रिमझिम' (1957) आदि। डा. वर्मा के एकांकियों को विषय की दृष्टि से सामाजिक एवं ऐतिहासिक वर्ग में रखा जा सकता है। आपने जीवन की तात्कालिक यथार्थता के स्थान पर चिरन्तन सत्य का चित्रण किया है। उनका दृष्टिकोण आदर्शवादी है, अतः उनकी रचनाओं में महत्वपूर्ण संदेश की अभिव्यक्ति हुई है। उनके कुछ एकांकियों में भावात्मकता की भी प्रधानता है।

(ख) लक्ष्मीनारायण मिश्र - आपके एकांकी संग्रह इस क्रम से प्रकाशित हुए आशोक वन, प्रलय के पंख पर एक दिन, कावेरी में कमल, बलहीन नारी का रंग, स्वर्ग में विप्लव, भगवान मनु तथा अन्य एकांकी आदि। इन्होंने अपने एकांकियों में पौराणिक, ऐतिहासिक, राजनैतिक, सामाजिक तथा मनोवैज्ञानिक समस्याओं का चित्रण सूक्ष्म रूप में किया है। उनमें ज्ञान और मनोरंजन का समन्वय बड़े सुन्दर ढंग से हुआ है। उनमें अभिनयशीलता का भी पूर्ण निर्वाह है।

(ग) श्री उपेन्द्रनाथ अश्क' - सामाजिक समस्याओं के चित्रण में 'अश्क' जी को अभूतपूर्व सफलता प्राप्त हुई। वे मध्यम वर्ग के समाज की कमजोरियों, रूढ़ियों तथा जीर्ण-शीर्ण परम्पराओं पर व्यंग्यात्मक शैली में प्रकाश डालते हैं। व्यंग्य की तीखी चोट करने में अश्क की बराबरी हिन्दी का और कोई एकांकी लेखक नहीं कर सका। अधिकार का रक्षक उनकी इस व्यंग्यात्मक शैली का स्थायी प्रमाण है। उन्होंने सर्वत्र पत्रानुकूल भाषा-शैली का प्रयोग किया है जिससे उनके एकांकियों में कहीं-कहीं खड़ी बोली के स्थान पर राजस्थानी, अवधी, बंगाली, पंजाबी आदि का भी प्रयोग मिलता है। मनोरंजन एवं अभिनेयता की दृष्टि से भी उनकी अनेक एकांकी पूर्णतः सफल हैं।

(घ) उदय शंकर भट्ट भट्ट - जी ने एक ही कब्र में' (1933), 'दस हजार' (1938), 'दुर्गा', 'नेता', उन्नीस सौ पैंतीस', 'वर-निर्वाचन', 'सेठ लाभचन्द आदि एकांकियों की रचना सन् 1940 से पूर्व की। इनमें विभिन्न सामाजिक समस्याओं का चित्रण है। सन् 1940 और 1942 के मध्य उन्होंने 'स्त्री का हृदय', 'नकली और असली बड़े आदमी की मृत्यु', 'विष की पुड़िया', 'मुन्शी अनोखे लाल आदि एकांकियों की रचना की जिनमें हास्य और व्यंग्य का भी विकास मिलता है। आगे चलकर उनके अनेक एकांकी संग्रह प्रकाशित हुए। भट्ट जी के एकांकियों का क्षेत्र पर्याप्त व्यापक है, उनमें जीवन के विभिन्न पहलुओं का चित्रण मार्मिक रूप में हुआ है।

(ङ) भुवनेश्वर प्रसाद मिश्र - पाश्चात्य एकांकियों एवं एकांकीकारों की शैली का हिन्दी में पूर्ण विकास करने की दृष्टि से मिश्र जी का नाम बहुत विख्यात है। उनका प्रथम एकांकी श्यामाः एक वैवाहिक विडम्बना' सन् 1939 में प्रकाशित हुआ था जिस पर बर्नाड शॉ के 'कैण्डिडा' का प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। तत्पश्चात् 'पतिता' (1934) एक साम्यहीन साम्यवादी (1934) प्रतिभा का विवाह' (1936), 'रहस्य रोमांच : लाटरी' (1936), 'मृत्यु' (1936) आदि प्रकाशित हुए जो पाश्चात्य प्रभाव से युक्त हैं आपने सामाजिक रूढ़ियों, विवाह-वैषम्य, विभिन्न मनोवृत्तियों एवं मानसिक प्रवृत्तियों के चित्रण को अपनी कला का लक्ष्य बनाया है। उनके एकांकियों का मूल केन्द्र काम चेतना तथा तत्सम्बन्धी विभिन्न मनोवैज्ञानिक परिस्थितियों का भावात्मक चित्रण है।

(च) सेठ गोविन्द दास सेठ - जी ने ऐतिहासिक, सामाजिक, राजनैतिक, नैतिक एवं सामयिक आदि सभी विषयों पर कलम चलाई है। उनके नाटकों एवं एकांकियों की संख्या सौ से भी ऊपर है। आपके कुछ एकांकी हैं- 1. ऐतिहासिक बुद्ध की एक शिष्या, बुद्ध के सच्चे स्नेही कौन ? नानक का समाज, तेगबहादुर की भविष्यवाणी, परमहंस की पत्नी आदि। 2. सामाजिक समस्या प्रधान स्पर्धा, मानव-मन, मैत्री, हंगर- स्ट्राइक, ईद और होली, जाति उत्थान, वह मरा क्यों ? आदि। 3. राजनैतिक सच्चा कांग्रेसी कौन ? 4. पौराणिक कृषि यज्ञ आदि। सेठ जी का दृष्टिकोण आदर्शवादी एवं सुधारवादी है, अतः उनमें समस्याओं का चित्रण प्रचारात्मक ढंग से होता है। कला की सूक्ष्मता के स्थान पर उनमें विचारों की प्रौढ़ता अधिक है। कहीं-कहीं मनोरंजन की मात्रा उनमें न्यूनातिन्यून रह जाती है। उनकी शैली सरल एवं रोचक है।

(छ) जगदीश चन्द्र माथुर - माथुर जी का प्रथम एकांकी मेरी बांसुरी' सन् 1936 में प्रकाशित हुआ था। तदनंतर आपके अनेक एकांकी प्रकाशित हुए। आपके प्रायः सभी एकांकी रंगमंच की दृष्टि से बहुत सफल हैं। आपने यथार्थवादी शैली में विभिन्न समस्याओं का न केवल चित्रण किया है अपितु उनका मौलिक समाधान भी प्रस्तुत किया है। हास्य और व्यंग्य का पुट भी उनकी एकांकियों में मिलता है।

(ज) गिरिजा कुमार माथुर - आपने सन् 1936 से लेकर अब तक कई प्रकार के एकांकी लिखे हैं, जिन्हें चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है 1. सांस्कृतिक, 2 सामाजिक, 3. ऐतिहासिक एवं 4. प्रतीकात्मक या तत्वपरक। उनके सांस्कृतिक एकांकियों में 'कुमारसंभव', 'मेघ-छाया' जैसे एकांकी आते हैं तो 'पिकनिक', 'लाउड स्पीकर', 'मध्यस्थ' आदि को सामाजिक व्यंग्यों में स्थान दिया जा सकता है। रस की जीत', 'शांति विश्वदेवा' आदि प्रतीकात्मक वर्ग के प्रतिनिधि एकांकी हैं। माथुर जी ने अपने एकांकियों में भारतीय संस्कृति और इतिहास को गौरवपूर्ण रूप में प्रस्तुत करने के साथ-साथ समाज की विभिन्न समस्याओं पर भी व्यापक दृष्टि से प्रकाश डाला है।

(झ) भगवती चरण वर्मा - वर्मा जी ने अनेक एकांकी लिखे हैं जिनमें 'सबसे बड़ा आदमी', 'मैं और केवल मैं तथा 'दो कलाकार' आदि उल्लेखनीय हैं। आपने अपने एकांकियों में मानव मन की विभिन्न प्रवृत्तियों एवं मध्यवर्गीय समाज की विभिन्न समस्याओं का चित्रण यथार्थवादी दृष्टिकोण से किया है। इसमें हास्य-व्यंग्य की छटा भी विकीर्ण होती है। अनेक एकांकियों में संकलनत्रय का निर्वाह दृढ़तापूर्वक हुआ है। वातावरण सृष्टि एवं संक्षिप्त मर्मस्पर्शी एवं वाक् वैदग्ध्य युक्त संभाषणों का हुआ है।

(ञ) चन्द्रगुप्त विद्यालंकार - आपके एकांकियों में 'मनुष्य की कीमत', 'हिन्दुस्तान जाकर कहना', 'तांगेवाला', 'भेड़िये', 'नव प्रभात' आदि उल्लेखनीय हैं। इनके एकांकियों में आधुनिक युग, समाज एवं राष्ट्र की विभिन्न प्रवृत्तियों एवं समस्याओं का विश्लेषण आदर्शोन्मुखी यथार्थवादी दृष्टिकोण से किया गया है। विद्यालंकार जी किसी वाद विशेष के अनुयायी या पिछलग्गू नहीं, अतः सर्वत्र उनकी अपनी मान्यताएँ एवं उनका निजी चिन्तन मुखर है। सामाजिक समस्याओं का चित्रण करते समय कहीं-कहीं उन्होंने व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग भी किया है। वस्तुतः विषय वस्तु की उच्चता एवं एकांकी के शिल्प विधान की कुशलता दोनों ही दृष्टियों से इनके एकांकी महत्वपूर्ण हैं।

(ट) डा. सत्येन्द्र - आपने 'कुणाल' (1937), 'स्वतंत्रता का अर्थ' (1939), 'प्रायश्चित', 'बलिदान', 'बसन्त' आदि एकांकियों की रचना की है जो राष्ट्रीय सामाजिक एवं नैतिक चेतना से अनुप्राणित हैं। घटनाओं के विकास, वस्तु की गतिशीलता, चरित्र चित्रण की स्वाभाविकता, अभिनेयता आदि 'की दृष्टि से भी उनके एकांकी उच्चकोटि के हैं।

(ठ) अन्य एकांकीकार - हिन्दी के अन्य नाटककारों ने भी एकांकी के क्षेत्र में सफल प्रयोग किए हैं, जिनमें सेठ गोविन्ददास, हरिकृष्ण प्रेमी, वृन्दावन लाल वर्मा, गोविन्द बल्लभ पन्त, पृथ्वी नाथ शर्मा, गणेश प्रसाद द्विवेदी, सद्गुरु शरण अवस्थी आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। इनके एकांकियों की विषय- 'वस्तु विचारधारा, जीवन दृष्टि एवं शैली प्रायः इनकी नाट्य कला के ही अनुरूप है। आचार्य चतुरसेन शास्त्री, धर्म प्रकाश आनन्द, सज्जाद जहीर, यज्ञदत्त शर्मा प्रभृति ने भी एकांकी साहित्य की अभिवृद्धि में पर्याप्त योगदान दिया है। इनमें आचार्य शास्त्री की पन्ना धाय, हाड़ा रानी, रूठी रानी तथा प्रो. आनन्द की 'मिस्टर मौलिक', 'दीनू' एवं जहीर की 'बीमार' तथा शर्मा की 'प्रतिशोध', 'दहेज', 'दया' आदि विशेष उल्लेखनीय एकांकी हैं।

(ii) सन् 1946 से अब तक - द्वितीय महायुद्ध के अनन्तर हमारी राष्ट्रीय परिस्थितियों और सामाजिक जीवन में पर्याप्त अन्तर पाया, जिसका प्रभाव साहित्य पर भी पड़ा। अब जहाँ जीवन में अधिक यथार्थवादिता एवं सक्रियता आई, वहाँ साहित्य में उसके अनुरूप परिवर्तन हुआ। जिस प्रकार कविता के क्षेत्र में अब प्रबन्ध काव्य की अपेक्षा लघु कविताओं एवं मुक्तकों को अधिक आश्रय मिला लगभग उसी प्रकार नाटक के क्षेत्र में भी एकांकियों एवं ध्वनि-मूलकों (रेडियो एकांकी) को प्रमुखता प्राप्त हुई। नये युग में प्रायः सभी नाटककारों ने तो एकांकी एवं ध्वनि रूपक प्रस्तुत किए ही हैं, साहित्य की अन्य विधाओं - कहानी, कविता, निबन्ध सम्बोधित साहित्यकारों ने भी इस क्षेत्र में न्यूनाधिक योग दिया है तथा अनेक लेखक भी अवतरित हुए।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आदिकाल के हिन्दी गद्य साहित्य का परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी की विधाओं का उल्लेख करते हुए सभी विधाओं पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी नाटक के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  4. प्रश्न- कहानी साहित्य के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी निबन्ध के विकास पर विकास यात्रा पर प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- 'आत्मकथा' की चार विशेषतायें लिखिये।
  8. प्रश्न- लघु कथा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी गद्य की पाँच नवीन विधाओं के नाम लिखकर उनका अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  10. प्रश्न- आख्यायिका एवं कथा पर टिप्पणी लिखिये।
  11. प्रश्न- सम्पादकीय लेखन का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- ब्लॉग का अर्थ बताइये।
  13. प्रश्न- रेडियो रूपक एवं पटकथा लेखन पर टिप्पणी लिखिये।
  14. प्रश्न- हिन्दी कहानी के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रेमचंद पूर्व हिन्दी कहानी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- नई कहानी आन्दोलन का वर्णन कीजिये।
  17. प्रश्न- हिन्दी उपन्यास के उद्भव एवं विकास पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
  18. प्रश्न- उपन्यास और कहानी में क्या अन्तर है ? स्पष्ट कीजिए ?
  19. प्रश्न- हिन्दी एकांकी के विकास में रामकुमार वर्मा के योगदान पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- हिन्दी एकांकी का विकास बताते हुए हिन्दी के प्रमुख एकांकीकारों का परिचय दीजिए।
  21. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि डा. रामकुमार वर्मा आधुनिक एकांकी के जन्मदाता हैं।
  22. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का योगदान बताइये।
  24. प्रश्न- निबन्ध साहित्य पर एक निबन्ध लिखिए।
  25. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के आधार पर जीवनी और संस्मरण का अन्तर स्पष्ट कीजिए, साथ ही उनकी मूलभूत विशेषताओं की भी विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- 'रिपोर्ताज' का आशय स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- आत्मकथा और जीवनी में अन्तर बताइये।
  28. प्रश्न- हिन्दी की हास्य-व्यंग्य विधा से आप क्या समझते हैं ? इसके विकास का विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- कहानी के उद्भव और विकास पर क्रमिक प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- सचेतन कहानी आंदोलन पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- जनवादी कहानी आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
  32. प्रश्न- समांतर कहानी आंदोलन के मुख्य आग्रह क्या थे ?
  33. प्रश्न- हिन्दी डायरी लेखन पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- यात्रा सहित्य की विशेषतायें बताइये।
  35. अध्याय - 3 : झाँसी की रानी - वृन्दावनलाल वर्मा (व्याख्या भाग )
  36. प्रश्न- उपन्यासकार वृन्दावनलाल वर्मा के जीवन वृत्त एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- झाँसी की रानी उपन्यास में वर्मा जी ने सामाजिक चेतना को जगाने का पूरा प्रयास किया है। इस कथन को समझाइये।
  38. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास में रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र पर प्रकाश डालिये।
  39. प्रश्न- झाँसी की रानी के सन्दर्भ में मुख्य पुरुष पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ बताइये।
  40. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास के पात्र खुदाबख्श और गुलाम गौस खाँ के चरित्र की तुलना करते हुए बताईये कि आपको इन दोनों पात्रों में से किसने अधिक प्रभावित किया और क्यों?
  41. प्रश्न- पेशवा बाजीराव द्वितीय का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  42. अध्याय - 4 : पंच परमेश्वर - प्रेमचन्द (व्याख्या भाग)
  43. प्रश्न- 'पंच परमेश्वर' कहानी का सारांश लिखिए।
  44. प्रश्न- जुम्मन शेख और अलगू चौधरी की शिक्षा, योग्यता और मान-सम्मान की तुलना कीजिए।
  45. प्रश्न- “अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है।" इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
  46. अध्याय - 5 : पाजेब - जैनेन्द्र (व्याख्या भाग)
  47. प्रश्न- श्री जैनेन्द्र जैन द्वारा रचित कहानी 'पाजेब' का सारांश अपने शब्दों में लिखिये।
  48. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
  49. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी की भाषा एवं शैली की विवेचना कीजिए।
  50. अध्याय - 6 : गैंग्रीन - अज्ञेय (व्याख्या भाग)
  51. प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर अज्ञेय द्वारा रचित 'गैंग्रीन' कहानी का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- कहानी 'गैंग्रीन' में अज्ञेय जी मालती की घुटन को किस प्रकार चित्रित करते हैं?
  53. प्रश्न- अज्ञेय द्वारा रचित कहानी 'गैंग्रीन' की भाषा पर प्रकाश डालिए।
  54. अध्याय - 7 : परदा - यशपाल (व्याख्या भाग)
  55. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से 'परदा' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  56. प्रश्न- 'परदा' कहानी का खान किस वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करता है, तर्क सहित इस कथन की पुष्टि कीजिये।
  57. प्रश्न- यशपाल जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  58. अध्याय - 8 : तीसरी कसम - फणीश्वरनाथ रेणु (व्याख्या भाग)
  59. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
  60. प्रश्न- रेणु की 'तीसरी कसम' कहानी के विशेष अपने मन्तव्य प्रकट कीजिए।
  61. प्रश्न- हीरामन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- हीराबाई का चरित्र चित्रण कीजिए।
  63. प्रश्न- 'तीसरी कसम' कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- 'तीसरी कसम' उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  66. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु जी के रचनाओं का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- हीराबाई को हीरामन का कौन-सा गीत सबसे अच्छा लगता है ?
  68. प्रश्न- हीरामन की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए?
  69. अध्याय - 9 : पिता - ज्ञान रंजन (व्याख्या भाग)
  70. प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है? स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
  73. अध्याय - 10 : ध्रुवस्वामिनी - जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग)
  74. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक का कथासार अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
  75. प्रश्न- नाटक के तत्वों के आधार पर ध्रुवस्वामिनी नाटक की समीक्षा कीजिए।
  76. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर चन्द्रगुप्त के चरित्र की विशेषतायें बताइए।
  77. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी नाटक में इतिहास और कल्पना का सुन्दर सामंजस्य हुआ है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  78. प्रश्न- ऐतिहासिक दृष्टि से ध्रुवस्वामिनी की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- 'धुवस्वामिनी' नाटक के अन्तर्द्वन्द्व किस रूप में सामने आया है ?
  81. प्रश्न- क्या ध्रुवस्वामिनी एक प्रसादान्त नाटक है ?
  82. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' में प्रयुक्त किसी 'गीत' पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  83. प्रश्न- प्रसाद के नाटक 'ध्रुवस्वामिनी' की भाषा सम्बन्धी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  84. अध्याय - 11 : दीपदान - डॉ. राजकुमार वर्मा (व्याख्या भाग)
  85. प्रश्न- " अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है।" 'दीपदान' एकांकी में पन्ना धाय के इस कथन के आधार पर उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  86. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का कथासार लिखिए।
  87. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का उद्देश्य लिखिए।
  88. प्रश्न- "बनवीर की महत्त्वाकांक्षा ने उसे हत्यारा बनवीर बना दिया। " " दीपदान' एकांकी के आधार पर इस कथन के आलोक में बनवीर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  89. अध्याय - 12 : लक्ष्मी का स्वागत - उपेन्द्रनाथ अश्क (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी की कथावस्तु लिखिए।
  91. प्रश्न- प्रस्तुत एकांकी के शीर्षक की उपयुक्तता बताइए।
  92. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी के एकमात्र स्त्री पात्र रौशन की माँ का चरित्रांकन कीजिए।
  93. अध्याय - 13 : भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  94. प्रश्न- भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?' निबन्ध का सारांश लिखिए।
  95. प्रश्न- लेखक ने "हमारे हिन्दुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं।" वाक्य क्यों कहा?
  96. प्रश्न- "परदेशी वस्तु और परदेशी भाषा का भरोसा मत रखो।" कथन से क्या तात्पर्य है?
  97. अध्याय - 14 : मित्रता - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (व्याख्या भाग)
  98. प्रश्न- 'मित्रता' पाठ का सारांश लिखिए।
  99. प्रश्न- सच्चे मित्र की विशेषताएँ लिखिए।
  100. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की भाषा-शैली पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  101. अध्याय - 15 : अशोक के फूल - हजारी प्रसाद द्विवेदी (व्याख्या भाग)
  102. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के नाम की सार्थकता पर विचार करते हुए उसका सार लिखिए तथा उसके द्वारा दिये गये सन्देश पर विचार कीजिए।
  103. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के आधार पर उनकी निबन्ध-शैली की समीक्षा कीजिए।
  104. अध्याय - 16 : उत्तरा फाल्गुनी के आसपास - कुबेरनाथ राय (व्याख्या भाग)
  105. प्रश्न- निबन्धकार कुबेरनाथ राय का संक्षिप्त जीवन और साहित्य का परिचय देते हुए साहित्य में स्थान निर्धारित कीजिए।
  106. प्रश्न- कुबेरनाथ राय द्वारा रचित 'उत्तरा फाल्गुनी के आस-पास' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  107. प्रश्न- कुबेरनाथ राय के निबन्धों की भाषा लिखिए।
  108. प्रश्न- उत्तरा फाल्गुनी से लेखक का आशय क्या है?
  109. अध्याय - 17 : तुम चन्दन हम पानी - डॉ. विद्यानिवास मिश्र (व्याख्या भाग)
  110. प्रश्न- विद्यानिवास मिश्र की निबन्ध शैली का विश्लेषण कीजिए।
  111. प्रश्न- "विद्यानिवास मिश्र के निबन्ध उनके स्वच्छ व्यक्तित्व की महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति हैं।" उपरोक्त कथन के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
  112. प्रश्न- पं. विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  113. अध्याय - 18 : रेखाचित्र (गिल्लू) - महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  114. प्रश्न- 'गिल्लू' नामक रेखाचित्र का सारांश लिखिए।
  115. प्रश्न- सोनजूही में लगी पीली कली देखकर लेखिका के मन में किन विचारों ने जन्म लिया?
  116. प्रश्न- गिल्लू के जाने के बाद वातावरण में क्या परिवर्तन हुए?
  117. अध्याय - 19 : संस्मरण (तीन बरस का साथी) - रामविलास शर्मा (व्याख्या भाग)
  118. प्रश्न- संस्मरण के तत्त्वों के आधार पर 'तीस बरस का साथी : रामविलास शर्मा' संस्मरण की समीक्षा कीजिए।
  119. प्रश्न- 'तीस बरस का साथी' संस्मरण के आधार पर रामविलास शर्मा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  120. अध्याय - 20 : जीवनी अंश (आवारा मसीहा ) - विष्णु प्रभाकर (व्याख्या भाग)
  121. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर की कृति आवारा मसीहा में जनसाधारण की भाषा का प्रयोग किया गया है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  122. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' अथवा 'पथ के साथी' कृति का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  123. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर के 'आवारा मसीहा' का नायक कौन है ? उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  124. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में समाज से सम्बन्धित समस्याओं को संक्षेप में लिखिए।
  125. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में बंगाली समाज का चित्रण किस प्रकार किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के रचनाकार का वैशिष्ट्य वर्णित कीजिये।
  127. अध्याय - 21 : रिपोर्ताज (मानुष बने रहो ) - फणीश्वरनाथ 'रेणु' (व्याख्या भाग)
  128. प्रश्न- फणीश्वरनाथ 'रेणु' कृत 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज का सारांश लिखिए।
  129. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में रेणु जी किस समाज की कल्पना करते हैं?
  130. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में लेखक रेणु जी ने 'मानुष बने रहो' की क्या परिभाषा दी है?
  131. अध्याय - 22 : व्यंग्य (भोलाराम का जीव) - हरिशंकर परसाई (व्याख्या भाग)
  132. प्रश्न- प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा रचित व्यंग्य ' भोलाराम का जीव' का सारांश लिखिए।
  133. प्रश्न- 'भोलाराम का जीव' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  134. प्रश्न- हरिशंकर परसाई की रचनाधर्मिता और व्यंग्य के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  135. अध्याय - 23 : यात्रा वृत्तांत (त्रेनम की ओर) - राहुल सांकृत्यायन (व्याख्या भाग)
  136. प्रश्न- यात्रावृत्त लेखन कला के तत्त्वों के आधार पर 'त्रेनम की ओर' यात्रावृत्त की समीक्षा कीजिए।
  137. प्रश्न- राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृत्तान्तों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  138. अध्याय - 24 : डायरी (एक लेखक की डायरी) - मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित 'एक साहित्यिक की डायरी' कृति के अंश 'तीसरा क्षण' की समीक्षा कीजिए।
  140. अध्याय - 25 : इण्टरव्यू (मैं इनसे मिला - श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी) - पद्म सिंह शर्मा 'कमलेश' (व्याख्या भाग)
  141. प्रश्न- "मैं इनसे मिला" इंटरव्यू का सारांश लिखिए।
  142. प्रश्न- पद्मसिंह शर्मा कमलेश की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  143. अध्याय - 26 : आत्मकथा (जूठन) - ओमप्रकाश वाल्मीकि (व्याख्या भाग)
  144. प्रश्न- ओमप्रकाश वाल्मीकि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए 'जूठन' शीर्षक आत्मकथा की समीक्षा कीजिए।
  145. प्रश्न- आत्मकथा 'जूठन' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  146. प्रश्न- दलित साहित्य क्या है? ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कीजिए।
  147. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  148. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की भाषिक-योजना पर प्रकाश डालिए।

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